आज में आपको पर्यावरण प्रदूषण निबंध(Paryavaran pradushan nibandh) के बारे में अपने कुछ विचार कहने जा रहा हु.इस पृथ्वी पर जो सबसे अनमोल और बेशकीमती चीज़ से है, वो है हमारा पर्यावरण।
ईश्वर और कुदरत दोनों ने ही मिलकर हमारे पर्यावरण और प्रकृति को इस ढंग से रचा है कि इसका अनुमान लगा पाना मनुष्य के लिए शायद नामुमकिन है। हम मनुष्यों के ऊपर प्रकृति का जो एहसान है, उसे तो शायद हम कभी चुका नहीं पाएंगे लेकिन प्रकृति से जो कुछ भी हमें मिला है उसमें से कुछ अंश अगर हम प्रकृति को लौटा सकते हैं, तो यह हमारा सौभाग्य होगा। लौटाने से हमारा तात्पर्य है प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करना, जिसकी प्रकृति को आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.
में आशा करता हु की आपको ये Paryavaran pradushan nibandh पर हमारे विचार जरूर पसंद आएगे. अगर आपको हमारे Paryavaran pradushan nibandh विचार पसंद आए तो आप एक बार ये मेरी माँ पर निबंध भी एक बार जरूर पढ़े.
पर्यावरण प्रदूषण निबंध

इंसानों ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके साइंस के फील्ड में बहुत ज्यादा तरक्की हासिल कर ली है। हालांकि तरक्की हासिल करने के साथ उसने बहुत कुछ खोया भी है जिसमें से प्रदूषण का नाम भी आता है.
प्रदूषण आज के समय का एक सबसे बड़ा मुद्दा है जिसके बारे में सभी को पता होता है। पर्यावरण प्रदूषण हमारे जीवन की सबसे बड़ी समस्या है। प्रदूषण की वजह से हमारा पर्यावरण बहुत अधिक प्रभावित हो रहा है। प्रदूषण चाहे किसी भी तरह का हो लेकिन वह हमारे और हमारे पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होता है.
पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ
पर्यावरण प्रदूषण के अर्थ को तो हम समझेंगे ही, लेकिन साथ में यह भी जानेंगे कि पर्यावरण क्या है और हमें कैसे प्रभावित करता है? सबसे पहले पर्यावरण प्रदूषण के अर्थ को समझते हैं कि जिसमें किसी भी घटको में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिसका हमारे जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो, वह पर्यावरण कहलाता है। इस पर्यावरण में उद्योग, नगर और मानव विकास की जो प्रक्रिया होती है, उसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। पर्यावरण प्रदूषण को हम कई अलग-अलग रूपों में बांटकर देख सकते हैं
पर्यावरण प्रदूषण के कारण
प्रकृति से हमें जीवन यापन के लिए, हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए तथा अपना विकास तेज गति से करने के लिए बहुत से प्राकृतिक संसाधन मुफ्त में मिले हैं। परंतु समय के साथ-साथ हम इतने स्वार्थी और लालची होते जा रहे हैं कि अपने उसी पर्यावरण को प्रदूषित करते हुए उसे नष्ट करने पर तुले हुए हैं। इस बात को समझे बिना ही कि अगर हमारा पर्यावरण पूरी तरह से प्रदूषित हो जाएगा, तो फिर ये आने वाले समय में हमें और हमारी आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य और भविष्य पर गंभीर रूप से अपना प्रभाव डालेगा। फिर एक समय ऐसा आएगा जब हम सभी के पास पृथ्वी पर जिंदा रहने के लिए कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं बचेंगे। इसीलिए हमें पर्यावरण प्रदूषण के कारण को गंभीरता से लेना होगा और जल्द से जल्द इन कारणों को दूर करना होगा
औद्योगिक गतिविधियों का तेज होगा
वाहन का ज़्यादा इस्तेमाल
तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण का बढ़ना
जनसंख्या अतिवृद्धि
जीवाश्म ईधन दहन
कृषि अपशिष्ट
कल-कारखाने
वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग
प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना
वृक्षों को अंधा-धुंध काटना
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार
आज सृष्टि का कोई पदार्थ, कोई कोना प्रदूषण के प्रहार से नहीं बच पाया है। प्रदूषण मानवता के अस्तित्व पर एक नंगी तलवार की भाँति लटक रहा है। प्रदूषण के मुख्य स्वरूप निम्नलिखित हैं
(i) जल प्रदूषण
जल मानव जीवन के लिये परम आवश्यक पदार्थ है। जल के परम्परागत स्रोत हैं—कुएँ, तालाब, नदी तथा वर्षा का जल प्रदूषण ने इन सभी स्रोतों को दूषित कर दिया है। औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ हानिकारक कचरा और रसायन बड़ी बेदर्दी से इन जल स्रोतों में मिल रहे हैं। महानगरों के समीप से बहने वाली नदियों की दशा तो अकथनीय है। गंगा, यमुना, गोमती सभी नदियों की पवित्रता प्रदूषण की भेंट चढ़ गयी है।
(ii) वायु प्रदूषण
वायु भी जल जितना ही आवश्यक पदार्थ है। श्वास-प्रश्वास के साथ वायु निरन्तर शरीर में जाती है। आज वायु का शुद्ध मिलना भी कठिन हो गया है। वाहनों, कारखानों और सड़ते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी जहर भर दिया है। घातक गैसों के रिसाव भी यदा कदा खण्ड प्रलय मचाते रहते हैं।
(ii) खाद्य प्रदूषण
प्रदूषित जल और वायु के बीच पनपने वाली वनस्पति या उसका सेवन करने वाले पशु-पक्षी भी आज दूषित हो रहे हैं। चाहे शाकाहारी हों या माँसाहारी कोई भोजन के प्रदूषण से नहीं बच सकता।
(iv) ध्वनि प्रदूषण
आज मनुष्य को ध्वनि के प्रदूषण को भी भोगना पड़ रहा है। कर्णकटु और कर्कश ध्वनियाँ मनुष्य के मानसिक सन्तुलन को बिगाड़ती हैं और उसकी कार्यक्षमता को भी कुप्रभावित करती हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति की कृपा के फलस्वरूप आज मनुष्य कर्कश, असहनीय और श्रवणशक्ति को क्षीण करने वाली ध्वनियों के समुद्र में रहने को मजबूर है। आकाश में वायुयानों की कानफोड़ ध्वनियाँ, धरती पर वाहनों, यन्त्रों और संगीत का मुफ्त दान करने वाले ध्वनि विस्तारक का शोर सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देने पर तुले हुए हैं।
पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने के कारण
प्रायः हर प्रकार के प्रदूषण की वृद्धि के लिये हमारी औद्योगिक और वैज्ञानिक प्रगति तथा मनुष्य का अविवेकपूर्ण आचरण ही जिम्मेदार है। चर्म उद्योग, कागज उद्योग, छपाई उद्योग, वस्त्र उद्योग और नाना प्रकार के रासायनिक उद्योगों का कचरा तथा प्रदूषित जल लाखों लीटर की मात्रा में रोज नदियों में बहाया जाता है या जमीन में समाया जा रहा है। गंगाजल, जो कि वर्षों तक शुद्ध और अविकृत रहने के लिए प्रसिद्ध था, वह भी हमारे पापों से मलिन हो गया है। वाहनों का विसर्जन, चिमनियों का धुंआ, रसायनशालाओं की विषैली गैसें मनुष्यों की साँसों में गरल फूँक रही हैं। प्रगति और समृद्धि के नाम पर यह जहरीला व्यापार दिन-दूना बढ़ता जा रहा है। सभी प्रकार के प्रदूषण हमारी औद्योगिक, वैज्ञानिक और जीवन स्तर की प्रगति से जुड़ गये हैं। हमारी हालत साँप-छछूंदर जैसी हो रही है।
Paryavaran pradushan nibandh 200 शब्द में
प्रदूषण ऐसा रोग नहीं है जिसका कोई उपचार ही न हो। इसका पूर्ण रूप से उन्मूलन न भी हो सके तो इसे हानिरहित सीमा तक नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके लिए कुछ कठोर, अप्रिय और असुविधाजनक उपाय भी अपनाने पड़ेंगे.
प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बस्तियों से सुरक्षित दूरी पर ही स्थापित और स्थानान्तरित किया जाना चाहिये। उद्योगों से निकलने वाले कचरे और दूषित जल को निष्क्रिय करने के उपरान्त ही विसर्जित करने के कठोर आदेश होने चाहिये। किसी भी प्रकार की गन्दगी और प्रदूषित पदार्थ को नदियों और जलाशयों में छोड़ने पर कठोर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिये। नगरों की गन्दगी को भी सीधा जलस्रोतों में न मिलने देना चाहिए। किसी भी प्रकार का प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को नगर के बीच नहीं रहने दिया जाना चाहिये। वायु को प्रदूषित करने वाले वाहनों पर भी नियन्त्रण आवश्यक है। ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति तभी मिलेगी जबकि वाहनों का आंधाधुंध प्रयोग रोका जाय। हवाई अड्डे बस्तियों से दूर बनें और वायुमार्ग भी | बस्तियों के ठीक ऊपर से न गुजरें। रेडियो, टेपरिकार्डर तथा लाउडस्पीकरों को मंद ध्वनि से बजाया जाय.
पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव
पर्यावरण प्रदूषण भारत में धीरे-धीरे एक चुनौती बनता जा रहा है। प्रदूषण की वजह से हम सभी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच रहा है। वायु प्रदूषण के कारण वातावरण में ओजोन परतों का विनाश हो रहा है। जल प्रदूषण होने की वजह से जलीय जीवन और अम्लीयता की मृत्यु हो रही है। मृदा प्रदूषण के होना का मतलब ऐसी मिट्टी से है जो अस्वास्थ्यकर या असंतुलित हो और जिससे पेड़-पौधे, खेत, फसल आदि की वृद्धि होने में कठिनाई हो। मृदा प्रदूषण से हरी-भरी ज़मीन भी बंजर हो जाती है। आज भारत एक नहीं बल्कि पर्यावरण प्रदूषण की तमाम चुनौतियों से जूझ रहा है और उनका सामना कर रहा है। वक़्त रहते इसका समाधान मिलना बहुत ज़रूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो फिर पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव से होने वाली हानि का अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा।
पर्यावरण प्रदूषण का मानव जीवन पर प्रभाव
पर्यावरण प्रदूषण का मानव जीवन पर कई तरह से प्रभाव पड़ रहा है। यह बताना ज़रूरी नहीं है कि पर्यावरण प्रदूषण ने मानव की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे जल, भोजन, वायु और मिट्टी के अंदर अपने विषैले तंतुओं को फैला दिया है। यह हमारे रहने, पीने और खाने को प्रभावित करता है। यह इंसानों के साथ जानवरों, पक्षियों, पेड़-पौधों के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है।
अलग-अलग चीजें हवा को प्रदूषित करती हैं जैसे मोटर वाहन और उद्योगों से निकलने वाली गैस, हवा के अंदर जीवाश्म ईंधन जलाना, ठोस औद्योगिक अपशिष्ट, तेल फैलना, प्लास्टिक डंप और पानी में फेंकने वाले शहर का कचरा नदी और महासागरों को प्रदूषित करता है। इसी तरह कृषि की अकार्बनिक प्रक्रियाएं मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर देती हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि पानी पीने के लिए उपयोग किया जाता है, भोजन बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली मिट्टी और साँस लेने के लिए हवा का उपयोग किया जाता है। अगर ये तीनों तत्व ही दूषित होंगे, तो मानव शरीर के अंदर अपने प्रदूषकों को डालेंगे जिससे गंभीर रोग पैदा होंगे।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, अस्थमा, लंग कैंसर, स्किन कैंसर, लेड पॉइजनिंग, कार्डियोवस्कुलर डिजीज एंड स्ट्रोक, रेडिएशन इनेबल्ड कैंसर, मरकरी पॉइजनिंग, जन्मजात डिसएबिलिटी, एलर्जी, फेफड़े की बीमारियां हैं, जो ऑक्यूपेशनल एक्सपोजर के कारण होती हैं। इसलिए हमें समझना होगा कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से कैसे बचा जाए और कैसे इसका समाधान ढूंढा जाए.
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और समाधान
ये तो हम सभी देख रहे हैं कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या दिन पर दिन किस कदर बढ़ती जा रही है और इसके जिम्मेदार भी सिर्फ और सिर्फ हम इंसान ही हैं। इसीलिए अब ये जिम्मेदारी भी हमारी ही बनती है कि इस समस्या का जल्द-से-जल्द ऐसा समाधान निकालें जिससे पर्यावरण प्रदूषण की समस्या जड़ से ही खत्म हो जाए। बढ़ते हुए मीलों, कारखानों, मोटर वाहनों, रासायनिक उर्वरकों, कार्बन-मोनो-आक्साइड गैस से निकलने वाला अपशिष्ट और धुआँ, नालियों का गंदा पानी और वनों की अंधाधुन कटाई के कारण पर्यावरण प्रदूषण की समस्या तेजी से बढ़ रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो आने वाला समय हम सभी के लिए दुःख और अशांति लेकर आएग.
यह समस्या अगर ऐसे ही बढ़ती रही, तो इससे सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि पूरा देश प्रभावित होगा और हम सभी को एक ऐसी गंभीर समस्या का सामना करना पड़ेगा, जिसके बारे में हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। दुनिया के जितने भी विकसित देश हैं वहाँ पर इस तरह की समस्या का होना बहुत ही आम बात है। भारत का हर व्यक्ति आज प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या की मार तो झेल रहा है लेकिन इसे दूर करने के लिए ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो कोशिश में लगे हुए हैं। पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभाव बहुत ही गंभीर और हानिकारक साबित होते हैं। पर्यावरण प्रदूषण के कारण हमारी सामाजिक स्थिति भी खंडित हो जाती है.
में आशा करता हु की आपको ये Paryavaran pradushan nibandh जरूर पसंद आया होगा.