आज में आपको जीवन में खेलों का महत्व पर निबंध (Khelo ka mahatva) के बारे में बताने जा रहा हु. खेल के बिना तो हम कभी अपने बचपन के बारे में सोच ही नहीं सकते है. बचपन में जब भी यह शब्द खेल सिर्फ नाम सुन लेते थे तब हमारी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता था. आज फिर से एक बार उस खेल को याद कर लेते है और इसी वजह से में आपको Khelo ka mahatva के बारे में बताऊंगा.
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जीवन में खेलों का महत्व पर निबंध

जीवन का सबसे बड़ा सुख नीरोगी काया है। सेहत ही सबसे बड़ी पूँजी है। यह बात किसी ने सोच-समझकर ही कही है। स्वस्थ व्यक्ति ही संसार के सारे सुखों का आनंद ले सकता है। बीमार व्यक्ति जीवन को नरक के समान भोगता है। स्वस्थ व्यक्ति अदम्य साहस तथा उत्साह की खान होता है। मानव शरीर ईश्वर की देन है और उसे स्वस्थ रखना हमारा काम है। शरीर की पूर्ण देखभाल, उचित खान-पान तथा नियमित व्यायाम द्वारा ही की जा सकती है। अतः जीवन में खेलों का बहुत महत्व
खेलों के प्रकार
खेल दो प्रकार के होते हैं-एक तो घर के अंदर खेले जाने वाले खेल, जैसे कैरम बोर्ड, शतरंज, लूडो, ताश, व्यापार इत्यादि। दूसरे प्रकार के खेल खुले मैदान में खेले जाते हैं। जैसे कबड्डी, फुटबॉल क्रिकेट, वॉलीबॉल, हॉकी, लम्बी व ऊँची कूद इत्यादि। घर के अंदर खेले जाने वाले खेल हमारा मनोरंजन करते हैं तथा हमारा बौद्धिक विकास भी करते हैं। परन्तु खुले मैदान में खेले जाने वाले खेल अधिक फायदेमंद होते हैं। वे हमारा मनोरंजन तो करते ही हैं, साथ ही साथ वे हमारा शारीरिक विकास भी करते हैं।
ये खेल आलस्य को दूर भगाकर हमें नई स्फूर्ति तथा ताकत देते हैं। खेलों से शरीर में रक्त का संचार तेज होता है तथा हमारी पाचन शक्ति ठीक रहती है। नित्य प्रति खेलने से हमारे पुढे शक्तिशाली हो जाते हैं, आँखों की रोशनी बढ़ती है तथा चेहरे पर भी चमक आ जाती
खेलों को खेलने के नियम
प्रत्येक खेल कुछ नियमों के अन्तर्गत खेले जाते हैं। यदि हम इन नियमानुसार नहीं खेलेंगे, तो लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। भोजन करने के तुरन्त बाद कोई भी बाहरी खेल नहीं खेलना चाहिए। खेल के बाद थोड़ा बहुत जलपान अवश्य लेना चाहिए। खेलों का चुनाव अपनी क्षमता तथा उम्र के अनुसार करना चाहिए। खेलते समय मुँह बन्द रखना चाहिए, तथा साँस नाक से लेनी चाहिए। खिलाड़ी को हमेशा ही शुद्ध शाकाहारी भोजन, दूध, फल, सब्जियाँ इत्यादि अधिक खानी चाहिए, जिससे शरीर मोटा न हो।
खेलों का जीवन पर प्रभाव
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है। खेलों से हमारा स्वास्थ्य सही रहता है, शरीर में चुस्ती, फुर्ती आती है, खून का संचार तेज होता है, जिससे हमारी कार्य क्षमता बढ़ जाती है। खेलों से हमारा शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास होता है। खेलों से मन की बुरी भावनाएँ दूर हो जाती हैं तथा इन्द्रियों में संयम आ जाता है। खेलों से मानव में दूसरों को समझने की समझ भी आती है।
दीर्घायु की कामना करने वाले व्यक्ति को अन्य बातों में समय नष्ट करने के बजाय कुछ देर खेलना अवश्य चाहिए। उन बच्चों की लम्बाई अच्छी निकलती है जो बचपन से ही नियमित रूप से खेल खेलते हैं। खेलों से हमारे अंदर संयम, सहयोग तथा मैत्री भाव भी जागृत होते हैं। प्रत्येक विद्यार्थी को अपने अध्ययन के समय से कुछ समय निकालकर खुले मैदान में अवश्य खेलना चाहिए।
आधुनिक युग में खेलों के प्रति लोगों की रुचि बढ़ने लगी है। खेलकूद जीवन में अनेक उत्तम गुणों का विकास करते हैं। इनसे शरीर चुस्त, फुर्तीला और बलिष्ठ होता है। खेलों के द्वारा ही हमारी शारीरिक क्षमताओं का विकास होता है। सुडौल और पुष्ट शरीर खेलों का उपहार है। खेलकूद शरीर को स्फूर्तिमय बनाने के साथ-साथ अनेक सामाजिक, मानसिक और राष्ट्रीय गुणों के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अधिकतर शिक्षा संस्थाओं में खेलकूद अनिवार्य हैं।
Khelo ka mahatva
खेलकूद का शारीरिक क्षमताओं के साथ गहरा संबंध है। खेलकूद शरीर को स्वस्थ और स्फूर्तिमय बनाए रखते हैं। खेलकूद के दौरान शरीर के लगभग सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है, शरीर की माँसपेशियाँ सुदृढ़ बनती हैं और काया निरोग रहती है। निरोग शरीर जीवन का सर्वश्रेष्ठ सुख है।
रोगी शरीर वाला व्यक्ति जीवन में किसी सुख का भोग नहीं कर सकता। स्वस्थ शरीर होने पर ही मनुष्य अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन और जीवन के सुखों का आनन्द उठा सकता है। शरीर को स्वस्थ बनाने में खेलकूद की मूल्यवान भूमिका होती है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो मन भी स्वस्थ नहीं हो सकता।
यदि मन रोगी हो गया, तो नाना प्रकार की व्याधियाँ जीवनभर संत्रस्त करती रहेंगी। अतः यदि मन स्वस्थ रखना है, तो शरीर का भी स्वस्थ होना बेहद जरूरी है और शरीर को खेलकूद के जरिए ही स्वस्थ रखा जा सकता है।
खेलकूद के जरिए ही व्यक्ति खेल के प्रति समर्पण के साथ खेल में निष्पक्षता, न्याय और हार-जीत दोनों को समान भाव से ग्रहण करना सीखता है। इसके साथ ही अपने प्रतिद्वंद्वी के प्रति सहज मैत्रीभाव की भावना भी खिलाड़ी में विकसित होती है। एक सच्चा खिलाड़ी कभी भी निराश नहीं होता। उसमें अपरिमित साहस और लगन का समावेश होता है। अपने अदम्य साहस और पूर्ण कौशल से वह कठिन से कठिन परिस्थिति का भी सामना करता है। वह कभी भी हताश नहीं होता। कभी-कभी तो इसी गुण के बल पर वह हारी हुई बाजी भी जीत लेता है।
आदर्श खिलाड़ी खेल में पूर्णतः निष्पक्ष और ईमानदार रहता है। वह नियमों का पालन करता है। अपने विपक्षी की दुर्बलता का अनुचित लाभ उठाने का प्रयत्न नहीं करता। साथ ही वह अपने प्रतिद्वंद्वी से भी नियमों के पालन की अपेक्षा करता है।
खेलकूद के जरिए खिलाड़ियों में सामूहिक खेलकूद की भावना का विकास होता है। इसका आशय यह है कि हर खिलाड़ी अपने पृथक-पृथक व्यक्तित्व को टीम के व्यक्तित्व में विलीन कर दे। टीम का प्रत्येक खिलाड़ी सम्पूर्ण टीम के लिए खेलता है, अपने लिए नहीं। ऐसे खेलों में हार या जीत टीम की होती है, किसी एक खिलाड़ी की जीत का इससे कोई संबंध नहीं है। अतः हर खिलाड़ी टीम की प्रतिष्ठा और उसे विजय दिलाने हेतु पूरी लगन से खेलता है।
खेलकूद में सामूहिक एकता की भावना का एक पहलू यह भी है कि सारी टीम को साथ लेकर चलो। यदि कोई खिलाड़ी इस भावना में रहे कि वह अकेले ही प्रतिद्वंद्वी टीम को हरा देगा, तो निश्चय ही इसे टीम भावना का अभाव माना जाएगा। खेल के मैदान में ऐसी भावना घातक होती है और इस भावना के फलस्वरूप सारी टीम को पराजय व अपमान का सामना करना पड़ता है।
खेलकूद के जरिए ही पारस्परिक सद्गुण का विकास होता है। खेल के मैदान में हर खिलाड़ी से यही आशा की जाती है कि अन्य खिलाड़ियों का सम्मान करेगा। प्रत्येक श्रेष्ठ खिलाड़ी अपने साथी खिलाड़ियों का सम्मान करता है और उनको प्रोत्साहित भी करता है। कर्त्तव्यनिष्ठा का सद्गुण श्रेष्ठ खिलाड़ी में होना ही चाहिए। जो खिलाड़ी अपने कर्त्तव्य का लगन के साथ पालन नहीं करता, वह कदापि अच्छा खिलाड़ी नहीं हो सकता। यदि कर्त्तव्य पालन में लगन की कमी हो तो उससे सफलता की आशा करना व्यर्थ है।
खेल का मैदान एक तरह से प्रशिक्षण स्थल होता है, जहाँ खिलाड़ी अनेक उत्तम गुणों को सीखता है और उन्हें अपने व्यवहारिक जीवन में उतारता है। व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन एक खेल की बाजी जैसा होता है, जिसमें चुनौतियों का सामना करना होता है। इन गुणों की सहायता से इन चुनौतियों का सामना करके सफलता प्राप्त करना सरल हो जाता है। अत: हम कह सकते हैं कि हमें शारीरिक और मानसिक रूप से दृढ़ बनाने में खेलों का बहुत महत्व है। इनकी सहायता से ही व्यक्ति के श्रेष्ठ पक्षों में निखार आता है।
तो दोस्तों में आशा करता हु की आपको ये जीवन में खेलों का महत्व पर निबंध (Khelo ka mahatva) जरूर पसंद आया होगा.