राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध | Hindi diwas par nibandh

राष्ट्रभाषा हिंदी हमारे राष्ट्र की शान है। भारत की समानता की धुरी है। आज इसी धुरी पर चर्चा करनी है जो में आपको राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध के जरिए बताऊंगा. में उम्मीद करता हु की राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध के जरिए किया गया हमारा ये प्रयास आपको पसंद आएगा. अगर ये पसंद आए तो एक बार इसे महंगाई की समस्या पर निबंध, आरक्षण का आधार पर निबंध भी पढ़े.

भारत की संस्कृति और सभ्यता की मूल चेतना को शुद्धता से अभिव्यक्त करने का माध्यम है । राष्ट्रीय विचारों का कोश है। भारतीय होने का प्रतीक है। स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के समय हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करवाने के लिए कई हिंदी प्रेमियों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवक ने प्रदर्शन किए, लाठियों का सामना किया। भारत के सविधान द्वारा कही हुए बात की अधीन संसद्‌ की कार्यवाही हिंदी अथवा अंग्रेजी में सम्पन्न होगी। 26 जनवरी, 1965 के पश्चात्‌ संसद्‌ की कार्यवाही केवल हिंदी में ही निस्पादित हो गयी थी।

राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध

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इतिहास

भारत की स्वतंत्रा के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभाने एकमत से यह निर्णय लिया की हिंदीकी खडी बोली ही भारत की राज भाषा होगी. इसी निर्णय के मुताबिक़ 14सितंबर को हिंदीदिवस के तौर पर मनाया जाता है

राष्ट्रभाषा क्या है?

किसी भी देश में सबसे अधिक बोली एवं समझे जाने वाली भाषा ही वहां की राष्ट्रभाषा होती है. प्रत्येक राष्ट्र का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है उसमें अनेक जातियों, धर्मों और भाषाओं के लोग रहते हैं.

राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता होती है जिसका प्रयोग राष्ट्र के सभी नागरिक कर सके तथा राष्ट्र के सभी सरकारी कार्य उसी के माध्यम से किया जा सके ऐसी व्यापक भाषा राष्ट्रभाषा कहलाती है. दूसरे शब्दों में समझाऊं तो राष्ट्रभाषा से तात्पर्य यह है कि- किसी राष्ट्र की जनता की भाषा राष्ट्रभाषा कहलाती है.

संविधान में हिंदी की स्थान

चाहिए तो यह था कि संविधान में हिंदी को ही राष्ट्रभाषा माना जाता। अंग्रेजी के सहयोग की बात ही नहीं आनी चाहिए थी। कारण, राष्ट्रभाषा राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक है। हमारे साथ स्वतंत्र होने वाले पाकिस्तान ने उर्दू को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया था। तुर्की के जनप्रिय नेता कमाल पाशा ने स्वतंत्र होने के तत्काल पश्चात्‌ वहाँ तुर्की को राष्ट्रभाषा बना दिया था। इतना ही नहीं अपने नाम के साथ ‘ पाशा विदेशी शब्द हटाकर अपना नाम कमाल अतार्तुक कर दिया। हमारे पश्चात्‌ स्वंतंत्र होने वाले अनेक राष्ट्रों ने अपनी-अपनी राष्ट्रभाषा की घोषणा कर दी थी, किन्तु भारत के कर्णधार ‘सबको खुश करने ‘ की प्रणाली पर चलते हैं। सबको खुश करने का अर्थ सबको नाराज करना होता है। उसके बाद वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था।

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हिंदी भाषा की लोकप्रियता

हिंदी गाने एवं फिल्में पूरी दुनिया में देखें और सुने जाते हैं जाते हैं और यही वजह है कि दूसरे देशों के लोगों का भी लगाओ हिंदी भाषा सीखने में काफी बढ़ता जा रहा है.

आज बॉलीवुड के एक्टर और एक्ट्रेस को दूसरे देशों के लोग भी अच्छी तरह से पहचानते हैं और उन्हें यहां की फिल्मों को देखना भी काफी पसंद है. पुरी दुनिया से लोग हिंदी सीखने के लिए रुचि दिखाते हैं.

हिंदी को उचित सम्मान नहीं

राजभाषा अधिनियम 1963 के अन्तर्गत हिंदी के साथ अंग्रेजी के प्रयोग को सदैव के लिए प्रयोगशील बना दिया गया। संसद में भी हिंदी के साथ अंग्रेजी के प्रयोग को अनुमति मिल गई और कहा गया कि जब तक भारत का एक भी राज्य हिंदी का विरोध करेगा, हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहासनारूढ़ नहीं किया जाएगा।

हिंदी के विरुद्ध

देश के हिंदी रक्षक ने नेहरू के विरुद्ध बात कहने का साहस ही नहीं था। राष्ट्रकवि, राष्ट्रीय लेखक, राष्ट्रीय झंडा फहराने वाले हिंदी-लेखकों, हिंदी-संस्थाओं के संचालकों को काठ मार गया। वह नेहरू जी की भाषा में बोलने लगे, उन्ही के अनुरूप विचार प्रकट करने लगे। हिंदी शुभचिंतक को कुचलता हुआ देख आँखों में आसूं ना आयी। हाँ, एक मात्र कांग्रेसी, माँ-भारती का सच्चा सपूत सेठ गोविंद दास ही इस अग्नि-परीक्षा में सफल हुआ।

जिन्होंने डंके की चोट सीना तान कर राजभाषा अधिनियम 1963 के विरुद्ध मत दिया। वे संसद्‌ में दहाड़ उठे, ‘ भले ही मुझे कांग्रेस छोड़नी पड़े, पर मैं आँखों देखा विष नहीं खा सकता। लोकततन्त्र के महान्‌ समर्थक पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा हिंदी को सिंहासनारूढ़ करने की अंतिम शर्त लोकतंत्र का अनादर है, जनतंत्र के आधारभूत नियमों के विरुद्ध है, प्रजातंत्र का गला घोंटना है ।

लोकतंत्र बहुमत की बात करता है, सबके साक्ष्य की नहीं । न सारे प्रांत कभी हिंदी को चाहेंगे, न हिंदी सिंहासनारूढ़ होगी। कांग्रेसी शासकों ने अंग्रेजों से सीखा था–‘फूट डालो, राज्य करो।’ यह सिद्धांत शासन-संचालन की अचूक औषध है। भाषा के प्रश्न पर उत्तर-दक्षिण की बात खड़ी करके भारतीय समाज को अलग कर दिया गया। हिन्दू-संस्कृति और सभ्यता, वैदिक-साहित्य का अध्ययन की क्षमता दक्षिण की उत्तर दान रही है। दक्षिण में आज भी हिन्दू-संस्कृति की झंडा फहरा रहे हैं। आज भी वेदों के पंडित तथा विद्वान्‌ उत्तर की अपेक्षा दक्षिण भारत में अधिक हैं।

हिन्दी के प्रति हमारा कर्तव्य

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है. इसकी उन्नति ही हमारी उन्नति है. मेरा मानना है कि हमारा कर्तव्य है कि हम हिंदी के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाएं. हिंदी के अंतर्गत विभिन्न प्रांतीय भाषाओं की सरल शब्दावली को अपनाया जाना चाहिए. हिंदी भाषा का प्रचार नारो से नहीं होता वह निरंतर परिश्रम और धैर्य से होता है और हिंदी व्याकरण का प्रमाणीकरण किया जाना चाहिए.

निष्कर्ष

राष्ट्रभाषा हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है। यदि हिन्दी–विरोधी अपनी स्वार्थी भावनाओं को त्याग सकें और हिन्दीभाषी धैर्य, सन्तोष और प्रेम से काम लें तो हिन्दी भाषा भारत के लिए समस्या न बनकर राष्ट्रीय जीवन का आदर्श बन जाएगी।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता के सन्दर्भ में कहा था– “मैं हमेशा यह मान रहा हूँ कि हम किसी भी हालत में प्रान्तीय भाषाओं को नुकसान पहुंचाना या मिटाना नहीं चाहते।

हमारा मतलब तो सिर्फ यह है कि विभिन्न प्रान्तों के पारस्परिक सम्बन्ध के लिए हम हिन्दी–भाषा सीखें। ऐसा कहने से हिन्दी के प्रति हमारा कोई पक्षपात प्रकट नहीं होता। हिन्दी को हम राष्ट्रभाषा मानते हैं। वही भाषा राष्ट्रभाषा बन सकती है, जिसे सर्वाधिक संख्या में लोग जानते–बोलते हों और जो सीखने में सुगम हो।”

में आशा करता हु की आपको ये राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध पे की गई बाते आपको पसंद आयी होगी.

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