बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध | Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi

आज में आपको बेहद गंभीर समस्या के ऊपर केहना चाहता हु बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ. आज इस बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध के जरिए हम हमारे समाज में होने वाले अत्याचार पर अंकुश लगाने की एक पहल शुरू करे.

जैसा कि हम जानते है कि भारत देश एक कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ पुरुष प्रधान देश भी है। शुरुआत से ही लड़कियों को दबाने की सोच ही विकसित हुई है, जो समय के साथ धीरे-धीरे कम भी हुई है। अब हर जगह महिलाओं को समान अधिकार दिये गए है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एक अभियान नहीं अपितु लोगों के दिल में बसी इस छोटी सोच को मिटाना भी है। यदि आपको यह बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध पसंद आए तो आप एक बार यह मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध अवश्य पढ़े.

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध

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पृथ्वी पर हर जीव जन्तु का अस्तित्व नर और मादा दोनों के समान भागीदारी के बिना संभव नहीं है। किसी भी देश के विकास के लिए पुरुष और महिला का समान रूप से योगदान रहना जरूरी है अन्यथा देश का विकास रुक जाता है।

देश के अधिकतर रहवासी अल्ट्रासाउंड के माध्यम से बच्चा होने से पहले ही लिंग परीक्षण करवा देते हैए अगर लड़की निकलती है तो उसे पैदा होने से पहले ही गर्भ में मरवा देते है। इन सब को रोकने के लिए ही देश के प्रधानमंत्री को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का जागरूकता अभियान शुरू करना पड़ा।

यह भारत जैसे देश की सबसे बड़ी विडम्बना है जहाँ इस देश में देशवासी, देश को माँ का दर्ज़ा देते है वही यहाँ के निवासी बेटियों को अधिकार देने में चूक जाते है।

देशवासियों को यह याद दिलाना पड़ता है कि बेटे और बेटी में फर्क नहीं करना होता है, दोनों को समान अधिकार और सम्मान के साथ जीने की आजादी है। इसी सोच को हटाने और कन्याओं का भविष्य बनाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत हुई।

वर्तमान में समाज की मानसिकता

वर्तमान में मध्यमवर्गीय समाज बालिकाओं को पढ़ाने की द्रष्टि से अपनी परम्परा वादी सोच को ही महत्व देता चला आ रहा है, क्युकि वह बेटी को पराया धन ही मानता है। इसलिए बेटी को पालना पोषनाए पढ़ाना लिखानाए उसकी शादी में दहेज़ देना आदि बेवजह भार मानता है।

इस तरह कुछ स्वार्थी सोच वाले कन्या के जन्म को ही नही चाहते है, इसलिए वे चिकित्सकीय साधनों द्वारा गर्भाव्यवस्था में ही लिंग परीक्षण करवाकर कन्या जन्म को रोक देते है, परिणामस्वरूप जनसंख्या में बालक-बालिकाओं के अनुपात में बहुत अंतर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगता है, जो भारी दाम्पत्य जीवन के लिए एक बड़ी बाधा बन रहा है।

हमारी भारतीय संस्कृति में कन्या को देवी का स्वरूप माना गया है, नवरात्रि और देवी जागरण के समय कन्या पूजन की परम्परा से सब परिचित हैं। हमारे धर्मग्रंथ में भी नारी की महिमा का गुणगान करते हैं। आज उसी भारत में कन्या को गर्भ में ही समाप्त कर देने की लज्जाजनक परम्परा चल रही हैं। इस घोर पाप ने सभ्य जगत के सामने हमारे मस्तक को झुका दिया हैं।

कन्या भ्रूण हत्या के कारण

कन्या भ्रूण हत्या के पीछे अनेक कारण हैं, कुछ राजवंशों और सामंत परिवारों में विवाह के समय वर वधु के सामने न झूकने के झूठे अहंकार ने कन्याओं की बलि ली। पुत्री की अपेक्षा पुत्र को अधिक महत्व दिया जाना, धन लोलुपता, दहेज प्रथा तथा कन्या के लालन पोषण और सुरक्षा में आ रही समस्याओं ने भी इस निंदनीय कार्य को बढ़ावा दिया हैं।

कन्या भ्रूण हत्या के दुष्परिणाम

इस निंदनीय आचरण के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। देश के अनेक राज्यों में लड़कियों और लड़को का अनुपात में चिंताजनक गिरावट आ रही हैं। लड़कियों की कमी हो जाने से अनेक युवक कुवारे घूम रहे हैं। अगर सभी लोग पुत्र ही पुत्र चाहेगे तो पुत्रियाँ कहा से आएगी।

कन्या भ्रूण हत्या रोकने के उपाय

कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए जनता और सरकार ने लिंग परीक्षण को अपराध घोषित करके कठोर दंड का प्रावधान किया हैं, फिर भी चोरी छिपे यह काम चल रहा हैं, इसमें डॉक्टरों तथा परिवारजनों का सहयोग रहता हैं। इस समस्या का हल तभी संभव हैं जब लोगों में लड़कियों के लिए हीन भावना समाप्त होए पुत्री और पुत्र में कोई भेद न किया जाए।

लिंगानुपात में बढ़ता अंतर

आज के समाज की बदली मानसिकता के कारण लिंगानुपात घटने का कारण बन रहा है, विभिन्न दशकों में हुई जनगणना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।सन 2011 की जनगणना के आधार पर बालक और बालिकाओं का अनुपात एक हजार पर 900 के आस-पास पहुच गया है। इस लिंगानुपात के बढ़ते अंतर को देखकर भविष्य में इस चिंता से मुक्त होने होने की दिशा में सरकार ने बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ का नारा दिया है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान

बेटियां देश की सम्पति हैं, इनको बचाना सभी भारतवासियों का कर्तव्य हैं। वे बेटों से कम महत्वपूर्ण नही हैं। परिवार तथा देश के उत्थान में उनका योगदान बेटों से अधिक हैं, उसके लिए उनकी सुरक्षा के साथ ही उनको सुशिक्षित बनाना भी जरुरी हैं। हमारे प्रधानमंत्री ने यह सोचकर ही बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दिया।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान क्या है

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 22 जनवरी 2015 को पानीपत हरियाणा में हुयी थी। इसके साथ ही जिनके घर बेटी पैदा होती है वो परिवार पाँच पेड़ लगाने का संकल्प लें। बेटों के बराबर बेटियों को अधिकार मिले इसलिए इस अभियान की शुरुआत हुई।

देश में लगातार कन्या शिशु दर में गिरावट को संतुलित करने और उनका भविष्य सुरक्षित करने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की गयी थी। स्त्री और पुरुष जीवन के दो पहलू है, दोनों को एक साथ चलना होगा तभी जीवन का मार्ग सरलतापूर्वक निकलेगा।

देश का प्रत्येक दंपति केवल लड़का पाने की इच्छा रखता है और इसी इच्छा के कारण देश में लिंगानुपात में भारी गिरावट आई। उसी गिरावट को एक सही दिशा में उछाल लाने के लिए ऐसी योजना या अभियान की शुरुआत करनी पड़ी।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की आवश्यकता

भारत में 2001 की जनगणना में 0.6 वर्ष के बच्चों का लिंगानुपात का आँकड़ा 1000 लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या 927 थी, जो कि 2010 कि जनगणना में घटकर 1000 लड़कों के अनुपात में 918 लड़कियाँ हो गई। सरकार के लिए यह एक गंभीर चिंता का विषय बन गया, इसलिए सरकार को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना शुरू करने की आवश्यकता महसूस हुई।
यूनिसेफ़ (UNICEF) ने भारत को बाल लिंगानुपात में 195 देशों में से 41वां स्थान दिया, यानि की हमारा देश लिंगानुपात में 40 देशों से पीछे है। अपनी रैंक में सुधार करने और कन्या शिशु को बचाने के लिए सरकार द्वारा सख्ती से योजना का शुभारम्भ किया गया।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का उद्देश्य

इस मिशन का मूल उद्देश्य समाज में पनपते लिंग असंतुलन को नियंत्रित करना है। यह अभियान हमारे घर की बहु-बेटियों पर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध एक संघर्ष है। इस अभियान के द्वारा समाज में लडकियों को समान अधिकार दिला जा सकते हैं। आज के समय में हमारे समाज में लडकियों के साथ अनेक प्रकार के अत्याचार किये जा रहे हैं जिनमें से दहेज प्रथा भी एक है। लडकियों को समाज में कन्या भ्रूण हत्या का सामना करना पड़ता है।

हम अपनी बेटियों को पढ़-लिखकर अपने सपनों को हासिल करने का मौका दे सकते हैं, जो भविष्य में कन्या भ्रूण हत्या और दहेज प्रथा को ना कहने की हिम्मत देगा। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान हमारे देश के प्रधानमंत्री द्वारा चलाया गया एक मुख्य अभियान है। भारत का यह सपना है कि लडकियों को उनका अधिकार मिलना चाहिए और एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना चाहिए।

निष्कर्ष

आदिकाल से जो लड़कियों के ऊपर अत्याचार हुये उनके पीछे का कारण अशिक्षा थी। अगर हमारे पूर्वज पढ़े-लिखे होते तो आज हमारी स्थिति कई गुना सुधरी हुयी होती। जब बेटियाँ पढ़ेगी-लिखेगी तो वो अपने अधिकारों के लिए खड़ी होगी, इसी आशा के साथ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत में की।

बेटी किसी भी क्षेत्र में लडकों की तुलना में कम सक्षम नहीं होती है और लडकियाँ लडकों की अपेक्षा अधिक आज्ञाकारी, कम हिंसक और अभिमानी साबित होती हैं। लडकियाँ अपने माता-पिता की और उनके कार्यों की अधिक परवाह करने वाली होती हैं।

प्रत्येक मनुष्य को यह सोचना चाहिए कि उसकी पत्नी किसी और आदमी की बेटी है और भविष्य में उसकी बेटी किसी और की पत्नी होगी। इसीलिए हर किसी को महिला के प्रत्येक रूप का सम्मान करना चाहिए। लडकियाँ मानव जाति के अस्तित्व का परम कारण होती हैं।

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