स्वच्छता पर निबंध | Cleanliness essay in hindi

दोस्तों आज में आपको स्वच्छता पर निबंध के जरिए यह बताना चाहूँगा की स्वच्छता का हमारा जीवन में होना बेहद आवशयक है. स्वच्छता पर निबंध के जरिए में इस बात पर भी रोशनी डालूँगा की एसे कोण कोण से हमारे प्रयास होते है जिससे हम गंदगी को बढ़ावा देते है एंड खुद ही अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारने का काम करते है. यदि आपको हमारा यह स्वच्छता के ऊपर प्रयास पसंद आए तो आप एक बार यह पर्यावरण प्रदूषण निबंध, दीवाली पर निबंध भी पढ़े.

स्वच्छता पर निबंध

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स्वच्छता को पहली सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के रूप में लेना चाहिए। सभी को यह समझना चाहिए कि भोजन और पानी के रूप में स्वच्छता आवश्यक है। हालांकि, हमें भोजन और पानी के बजाय स्वच्छता को पहली प्राथमिकता देनी चाहिए। हम तभी स्वस्थ हो सकते हैं जब हम अपने भीतर हर चीज को बहुत साफ और स्वच्छ तरीके से रखे।

स्वच्छता एक नौकरी नहीं है जिसे हमें पैसा कमाने के लिए करना पड़ता है। बल्कि यह एक बहुत अच्छी आदत है जिसे हमें एक अच्छे स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवन के लिए करना चाहिए। स्वच्छता एक सबसे बड़ा गुण है जिसका पालन सभी को जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी के रूप में करना चाहिए।

बचपन हर किसी के जीवन का सुखद समय होता है, जिसके दौरान माता-पिता की सावधानी और नियमित निगरानी के तहत साफ-सफाई की आदत का उपयोग केवल चलने, बोलने, दौड़ने, पढ़ने, खाने आदि में किया जाना होता है।

स्कूल और कॉलेजों में, छात्रों को विभिन्न प्रकार की स्वच्छता के विषय पर बहुत सारी परियोजनाए, और घर के काम दिए जाते हैं। यह अब बहुत महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि सफाई की कमी के कारण होने वाली बीमारियों के कारण एक बड़ी आबादी रोजाना मर रही है।

इसलिए हमारे जीवन में स्वच्छता के महत्व और आवश्यकता के बारे में जागरूक होना बहुत आवश्यक है। हम सभी को मिलकर हजारों जिंदगियों को बचाने और उन्हें स्वस्थ जीवन देने के लिए स्वच्छता की दिशा में एक कदम उठाने की जरूरत है। हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत नामक एक अभियान शुरू किया है। एक भारतीय नागरिक के रूप में हम सभी को इस अभियान के उद्देश्यों को पूरा करने में अपनी सक्रिय भागीदारी दिखानी चाहिए।

स्वच्छता एक क्रिया है जिससे हमारा शरीर दिमाग, कपड़े, घर, आसपास और कार्यक्षेत्र साफ और शुद्ध रहते है। हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिये साफ-सफाई बेहद जरुरी है। अपने आसपास के क्षेत्रों और पर्यावरण की सफाई सामाजिक और बौद्धिक स्वास्थ्य के लिये बहुत जरुरी है।

हमें साफ-सफाई को अपनी आदत में लाना चाहिये और कूड़े को हमेशा कूड़ेदान में ही डालना चाहिये, क्योंकि गंदगी वह जड़ है जो कई बीमारियों को जन्म देती है। हमे साफ-सफाई रखने के लिए कुछ बातें याद रखनी है जो निम्नलिखित है,

कैसे रखें साफ–सफाई

१) खुले में शौच न जाएं।
२) घरों का कचरा बाहर न फैलाएं। नालियों की साफ-सफाई का रखें खास ख्याल।
३) पानी की निकासी की सही व्यवस्था करें, गंदे पानी को जमा नहीं होने दें।
४) सार्वजनिक स्थलों पर बिस्किट, चिप्स के खाली पैकेट या फिर फलों के छिलके न फेंके बल्कि इसे एक पॉलीथीन में रखें और फिर किसी डस्टबिन में डालें।
५) नगर-निगम के सफाई कर्मचारियों पर ही सिर्फ-सफाई की जिम्मेदारी न छोड़े, बल्कि खुद भी साफ-सफाई रखने में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें।
६) बच्चों के अंदर घर से ही साफ-सफाई की आदत डालें।
७) अगर नगर-निगम के सफाई कर्मचारी रोजाना सफाई नहीं करें अथवा ढंग से काम नहीं करें तो उनकी लापरवाही से निगम को अवगत करवाएं ताकि उचित सफाई व्यवस्था बनी रहे।
८) जानवरों के लिए उचित प्रबंध करें ताकि वे खुले में मल-मूत्र से गंदगी न फैला सकें और अनावश्यक कीटाणु न पनप सके।

छात्र और बच्चो के लिए स्वच्छता

बचपन से ही बच्चो को स्वच्छता का महत्व बताना चाहिए। अगर यह अच्छी आदत बच्चो को बचपन से लग जाए तो उन्हें आगे चलकर घर और परिसर को साफ़-सुथरा रखने में कोई भी तकलीफ नहीं होगी।

ऐसे करने से उनका भविष्य अच्छा तो बनेगा ही साथ ही उन्हें किसी भी किसी भी बीमारी का सामना भी नहीं करना पड़ेगा।

हमने कभी भी खुद की संपत्ति और सार्वजनिक सम्पति में भेदभाव नहीं करना चाहिए। बस स्टॉप, बाग, अस्पताल, दफ्तर और स्कूल को अपना समझकर साफ़-सुथरा रखने की कोशिश करनी चाहिए। अगर सभी सार्वजनिक जगह साफ़-सुथरी रहेगी तो सभी का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और इसका अप्रत्यक्ष रूप से यह परिणाम होगा की हमारा देश और अर्थव्यवस्था और भी अधिक मजबूत होगी।

स्वच्छता मानव समुदाय का एक आवश्यक गुण है । यह विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाव के सरलतम उपायों में से एक प्रमुख उपाय है । यह सुखी जीवन की आधारशिला है । इसमें मानव की गरिमाए शालीनता और आस्तिकता के दर्शन होते हैं । स्वच्छता के द्वारा मनुष्य की सात्विक वृत्ति को बढ़ावा मिलता है ।

साफ-सुथरा रहना मनुष्य का प्राकृतिक गुण है । वह अपने घर और आस-पास के क्षेत्र को साफ रखना चाहता है । वह अपने कार्यस्थल पर गंदगी नहीं फैलने देता । सफाई के द्वारा वह साँपों, बिच्छुओं, मक्खियों, मच्छरों तथा अन्य हानिकारक कीड़ों-मकोड़ों को अपने से दूर रखता है । सफाई बरतकर वह अपने चित्त की प्रसन्नता प्राप्त करता है । सफाई उसे रोगों के कीटाणुओं से बचाकर रखती है । इसके माध्यम से वह अपने आस-पड़ोस के पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखता है ।

कुछ लोग अपने स्वभाव के विपरीत सफाई को कम महत्त्व देते हैं । वे गंदे स्थानों में रहते हैं । उनके घर के निकट कूड़ा.कचरा फैला रहता है । घर के निकट की नालियों में गंदा जल तथा अन्य वस्तुएँ सड़ती रहती हैं । निवास-स्थान पर चारों तरफ से बदबू आती है । वहाँ से होकर गुजरना भी दूभर होता है । वहाँ धरती पर ही नरक का दृश्य दिखाई देने लगता है ।

ऐसे स्थानों पर अन्य प्रकार की बुराइयों के भी दर्शन होते हैं । वहाँ के लोग संक्रामक बीमारियों से शीघ्र ग्रसित हो जाते हैं । गंदगी से थल, जल और वायु की शुद्धता पर विपरीत असर पड़ता है ।

साफ-सफाई न रखने पर होने वाले नुकसान

साफ-सफाई नहीं रखने पर हैजा, डायरिया, मलेरिया समेत तमाम तरह की बीमारियां पनपती हैं।
स्वच्छता नहीं होने पर व्यक्ति स्वस्थ महसूस नहीं करता, इससे उसके शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी नहीं हो पाता जिससे वह अपने जीवन में सफल नहीं हो पाता।
अस्वच्छता, स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में बाधा डालती है।
निष्कर्ष – स्वच्छता मानव समुदाय के लिए अतियावश्यक है, साफ-सुथरा रहना मनुष्य का प्राकृतिक गुण है, स्वच्छता के द्वारा मनुष्य की सात्विक वृत्ति को बढ़ावा मिलता है। इसलिए स्वच्छता का होना ज़रूरी है अगर साफ-सफाई नही होगी तो धरती पर केवल गंदगी ही गंदगी रहेगी और चारो तरफ बस बीमारियाँ ही बीमारियाँ पैदा होंगी, जिसका प्रभाव हमारे आने वाले कल पर पड़ेगा, इसलिए अगर हम सभी को अच्छा जीवन जीना है तो साफ-सफाई पर ध्यान देना होगा।

हमारे जीवन पर स्वच्छता का प्रभाव

स्वच्छता दैनिक जीवन की गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा में स्वच्छता का झुकाव पर प्रभाव पड़ता है। छात्रों की मानसिकता पर्यावरण से प्रभावित होती है जो छात्रों की सीखने की क्षमता को प्रभावित करती है। एक गंदा वातावरण सीखने के लिए अनुकूल नहीं है क्योंकि यह तनावपूर्ण गति पैदा करता है और छात्रों की सीखने की क्षमता कम हो जाती है।

कार्यस्थल में भी यही बात लागू होती है क्योंकि उत्पादकता पर्यावरण से प्रभावित होती है। एक स्वच्छ वातावरण उत्पादकता को बढ़ाएगा क्योंकि लोग सकारात्मक मानसिकता के साथ काम करेंगे जो तनाव से मुक्त है। साथ ही गंदे वातावरण की तुलना में स्वच्छ वातावरण में उपलब्धियाँ अधिक स्पष्ट होंगी। स्वास्थ्य में, स्वच्छता महत्वपूर्ण है क्योंकि स्वच्छ व्यवहार व्यक्तियों के अच्छे स्वास्थ्य में योगदान देता है। एक गंदा वातावरण लोगों को बीमारियों का शिकार करता है।

सामाजिक संबंध लोगों के बीच बातचीत के माध्यम से निर्मित होते हैं। व्यक्तिगत स्वच्छता सामाजिक संबंधों को बनाने में एक महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि यह एक गंदे व्यक्ति से संपर्क करना मुश्किल है क्योंकि उन्हें सांस की बदबूए शरीर की गंध और असुविधा के कारण बातचीत सीमित होगी।

स्वच्छता में चुनौतियां

संसाधनों की कमी से स्वच्छता बाधित हो सकती है। सफाई बनाए रखने के लिए पानी, डिटर्जेंट और सफाई उपकरणों जैसे अन्य वस्तु की आवश्यकता होती है। कुछ स्थितियों में ये सभी संसाधन अनुपलब्ध हो सकते हैं | इसलिए स्वच्छता से समझौता किया जाता है।

निष्कर्ष –अंत में, स्वच्छता एक बड़ी जिम्मेदारी है जिसके लिए प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। प्रदर्शन और उपलब्धियों पर एक स्वच्छ वातावरण के प्रभाव एक प्रेरक कारण होने चाहिए। यदि आप एक साफ जगह से प्यार करते हैं तो इसे साफ करना आपकी जिम्मेदारी होनी चाहिए |

स्वच्छता हर एक मनुष्य को मानसिक, सामाजिक, बौद्धिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाने के लिए जरूरी है। भारतीय संस्कृति में भी वर्षों से मान्यता है कि जहां पर स्वच्छता होती है वहां पर लक्ष्मी का वास होता है

भारत के धर्म ग्रंथों में भी साफ-सफाई और स्वच्छता से जुड़े कई निर्देश दिए गए हैं। भारत देश के एक वास्तविकता यह है कि यहां पर अन्य स्थानों की अपेक्षा सबसे अधिक गंदगी पाई जाती है।

धार्मिक स्थलों पर विविध आयोजनों के दौरान लाखों श्रद्धालु नेकेड स्वच्छता से अंजान होकर बहुत गंदकी फैलाते हैं। स्वस्थ शरीर, तन और आत्मा के लिए स्वच्छता बहुत ही महत्वपूर्ण है।

शारीरिक स्वच्छता के साथ-साथ हमारे आचरण कि स्वच्छता बहुत जरूरी होती है शुद्ध आचरण से मनुष्य का चेहरा उज्जवलित या तेजोमय रहता है। जिसके कारण सभी लोग उस व्यक्ति को आदर की दृष्टि से देखते हैं। स्वास्थ्य रक्षा के लिए भी स्वच्छता बहुत अनिवार्य होती है। जब मनुष्य स्वच्छ रहता है तो उसमें एक तरह की स्फूर्ति और प्रसन्नता आति है।

स्वच्छता हमे मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, और बौद्धिक हर तरीके से स्वस्थ बनता है। सामान्यतः, हमने हमेशा अपने घर मे ये ध्यान दिया होगा कि हमारी दादी और मां पूजा से पहले स्वच्छता को लेकर सख्त होती है | तब हमें यह व्यवहार कुछ अलग नहीं लगता, क्योंकि वो बस साफ सफाई को हमारी आदत बनाना चाहती है। लेकिन वो ग़लत तरीका अपनाती है, क्योंकि वो स्वच्छता के उद्देश्य और फायदे को नहीं बताती है, इसी वजह से हमे स्वच्छता का अनुसरण करने में समस्या आती है।

हर अभीवावक को तार्किक रूप से स्वच्छता के उद्देश्य, फायदे और जरूरत आदि के बारे में अपने बच्चो से बात करनी चाहिए। उन्हे जरूर बताना चाहिए कि स्वच्छता हमारे जीवन में खाने और पानी की तरह पहली प्राथमिकता है।

अपने भविष्य को चमकदार और स्वस्थ बनाने के लिए हमे हमेशा खुद को और अपने आसपास के पर्यावरण का ख्याल रखना चाहिए। हमे साबुन से नहाना, नाखूनों को काटना, साफ और इस्त्री किए हुए कपड़े आदि कार्य रोज करना चाहिए।

घर को कैसे स्वच्छ और शुद्ध बनाए ये हमे अपने माता-पिता से सीखना चाहिए। हमे अपने आसपास के वातावरण को साफ रखना चाहिए ताकि किसी प्रकार की बीमारी ना फैले। कुछ खाने से पहले और खाने के बाद साबुन से हाथ धोना चाहिए। हमे पूरे दिन साफ और शुद्ध पानी पीना चाहिए, हमे बाहर के खाने से बचना चाहिए, साथ ही ज्यादा मसालेदार और तैयार पेय पदार्थ से परहेज़ करना चाहिए। इस प्रकार हम खुद को स्वच्छ के साथ-साथ स्वस्थ भी रख सकते है।

जिन लोगो को गन्दी आदते होती हैं वो भी खतरनाक और जानलेवा बीमारियों को फैलाते है। संक्रमित रोग बड़े क्षेत्रों में फैलाते है और लोगो को बीमार करते है। कई बार तो इससे मौत भी हो जाती है, इसलिए हमे नियमित तौर पर अपने स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए। हम जब भी कुछ खाने जाए तो अपने हाथो को साबुन से धो ले। अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हमे बिल्कुल साफ कपड़े पहनने चाहिए। स्वच्छता से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और दुसरो का भी हम पर भरोसा बनता है। ये एक अच्छी आदत है जो हमे हमेशा खुश रखेगी। ये हमे समाज मे बहुत गौरांवित महसूस कराएगी।

निष्कर्ष – अगर हम जैसे खुद की परवाह करते है उसी तरह हम स्वच्छता की परवाह करने लगे तो वो वकत दूर नहीं जब हम बीमारियो से ज्यादा तंदुरस्त जीवन के साथ रहेंगे. आशा करता हु की आपको ये स्वच्छता पर निबंध पसंद आया होगा.

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