आज में आपको वसंत ऋतु पर निबंध कहने जा रहा हु.वसंत की व्याख्या है, ‘वसन्त्यस्मिन् सुखानि।’ अर्थात् जिस ऋतु में प्राणियों को ही नहीं, अपितु वृक्ष, लता आदि को भी आनंदमय करने वाला मधुरम प्रकृति से प्राप्त होता है, उसको ‘ वसन्त’ कहते हैं.
तो इसी मधुरम प्रकृति पे कहा गया ये वसंत ऋतु पर निबंध में उम्मीद करता हु की आपको जरूर पसंद आएगा.अगर आपको ये वसंत ऋतु पर निबंध पसंद आए तो आप एक बार ये सरस्वती पूजा पर निबंध भी पढ़े.
वसंत ऋतु पर निबंध

वसंत ऋतु का आगमन सभी देशों में अलग-अलग होता है। यह सर्दियों के तीन महीनों के लम्बे समय के बाद आती है, जिसमें लोगों को सर्दी और ठंड से राहत मिलती है। वसन्त ऋतु में तापमान में नमी आ जाती है और सभी जगह हरे-भरे पेड़ों और फूलों के कारण चारों तरफ हरियाली और रंगीन दिखाई देता है। भारत में वसंत ऋतु मार्च, अप्रैल और मई के महीने में, सर्दियों और गर्मियों के बीच में आती है। वसंत पुरे संसार को लीन करके समूची धरती को पुष्पाभरण से सजाकर मानव-चित्त की कोमल वृत्तियों को जागरित करता है। इसलिए ‘सर्वप्रिये चारुतरं बसन्ते’ कहकर कालिदास ने वसंत का अभिनन्दन किया है।
प्रकृति की विचित्र देन
प्रकृति की विचित्र देन है कि वसंत में बिना पानी के बरसे ही वृक्ष, लता आदि बढ़ते होते हैं। फरथई, काँकर, कवड़, कचनार, महुआ, आम और अत्रे के फूल अवनि-अंचल को ढक लेते हैं। पलाश तो ऐसा फूलता है, मानों पृथ्वी माता के चरणों में कोटि-कोटि सुमनांजलि अर्पित करना चाहता हो | घने रूप में उगने वाला कमल -पुष्प जब वसंत ऋतु में अपने पूर्ण युवावस्था के साथ खिलता है। आमों पर नौर आने लगते हैं आदि फूलो जैसे गुलाब, गंधराज, म्थलकमल, कर्माफूल के गुल्म महकते हैं। तो दूसरी और रजनीगंधा, अनार, नींबू, के खेत ऐसे लहरा उठते हैं, मानों किसी ने हरी और पीली मखमल बिछा दी हो ।
बसंत ऋतु की ऐतिहासिकता
बसंत पंचमी के दिन ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन सरस्वती पूजन किया जाता है। इसी दिन वीर हकीकत राय की भी मृत्यु हुई थी। वीर हकीकत राय के कारण इस दिन का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है।
वीर हकीकत राय जी का बलिदान हमें अपने धर्म पर अडिग रहने का संदेश देता है। हमें सभी धर्मों से प्रेरणा लेनी चाहिए और किसी भी धर्म के प्रति नफरत नहीं रखनी चाहिए। वीर हकीकत राय जी की याद में हर साल मेला लगता है। इस दिन वीर हकीकत राय जी को श्रद्धांजली दी जाती है।
वसंत ऋतु का आगमन
वसंत ऋतु का आगमन सभी देशों में अलग-अलग होने के साथ ही तापमान भी अलग-अलग देशों में अलग-अलग होता है। पेड़-पौधों की शाखाओं पर नई और हल्की हरी पत्तियाँ आना शुरु होती है। वृक्षों पर नव पल्लव अंकरित हो जाते हैं और कलियाँ खिलकर फूलों का रूप धारण कर लेती हैं । वसंत के आगमन पर आमों पर बौर आ जाते हैं । पुष्पों से पराग झड़ने लगता है । फलों पर भँवरे मंडराने लगते हैं और उद्यानों में तितलियाँ नृत्य करने लगती हैं । वसंत ऋतु में हमे एक खुशनुमा माहौल मिलता है। हवाओं में अनोखी सुगंध होती है। सभी ऋतुओं की अपनी-अपनी शोभा होती है।
स्वास्थ्यप्रद ऋतु
वसंत स्वास्थ्यप्रद ऋतु है। इसके शीतल-मन्द-सुगंध पुरे शरीर को नीरोग कर देता है। थोड़ा-सा व्यायाम और योग के आसन मानव को ‘लम्बी उम्र ‘ का वरदान देते हैं। इसीलिए आयुर्वेद- शास्त्र में वसंत को “स्वास्थ्यप्रद ऋतु’ विशेषण से सजाया गया है। कालिदास ने वसंत के उत्सव को ‘ऋतुत्सव’ माना है। माघ शुक्ल पँचमी (वसंत पँचमी) से आरंभ होकर फाल्गुन-पूर्णिमा (होली) तक पूरे चालीस दिन, ये उत्सव चलते हैं । आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी इसे मादक-उत्सवों का काल कहते हैं । उनका कहना है कि ‘कभी अशोक-दोहद के रूप में, कभी मदन देवता की पूजा के रूप में, कभी कामदेवायन-यात्रा के रूप में, कभी होली के हुड़दंग के रूप में, कभी होलाका (होला), आदि के रूप में समूचा वसंत काल नाचने – गाने उठता है। वसंत ऋतु का प्रथम उत्सव वसंत-पँचमी विद्या और कला की देवी सरस्वती का पूजा भी करते है।
ऋतुओं का राजा
वसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। इसी कारण इसे ‘ऋतुराज’ भी कहा जाता है । प्रकति ऋतुराज वसंत का हृदय की सम्पूर्ण भावनाओं से स्वागत करती है। वसंत ऋतु की शोभा सबसे निराली होती है। वसंत ऋतु का ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ स्थान होता है इसी वजह से यह ऋतुओं का राजा माना जाता है। इस ऋतु का समशीतोष्ण वातावरण सभी को प्रिय लगता है। वसंत का नाम ही उत्कंठा है। ‘ मादक महकतो वासंती बयार’ में, ‘मोहक रस पगे फूलों की बहार’ में, भौरों की गुंजा’ और कोयल की कूक में मानव-हृदय अतिप्रसन्न जाता है। प्राणियों के मनों में मदन-विकार का प्रकट होता है।
वसंत के मेले और उत्सव
कई जगह वसंत के मेले तथा उत्सव भी मनाए जाते है। वसंत के उत्सव का विशेष आकर्षण होता है — नृत्य-संगीत, खेलकूद प्रतियोगिताएँ तथा पतंगबाजी जैसे खेल खेले जाते है। बच्चो अपने दोस्त के साथ अपने घरो के छत तथा मैदानों में पतंगबाजी का आनंद लेते है। वसंत-पंचमी के दिन पीले वस्त्र पहनकर सभी अपना खुशी प्रकट करते है। वसंती हलुआ, पीले चाबल तथा केसरिया खीर का आनंद लिया जाता है।
जीवन के विभिन्न रंगों का त्योहार
वसंत ऋतु में वसंत-पचमी का त्योहार आता है । इस दिन अनेक स्थलों पर माँ सरस्वती की पूजा – अर्चना करते है। समस्त बंगाल , उडीसा असम तथा बिहार में लोग विद्या तथा कला की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा – उपासना करते हैं । इसी दिन कई लोग वसंती कपड़े पहन कर ऋतुराज के आगमन पर अपनी प्रसन्न व्यक्त करते हैं। वसंत ऋतु त्याग और बलिदान का प्रेरक है । इस ऋतं में गरु गोविन्द सिंह के नन्हे बच्चों ने धर्म के गौरव की रक्षा के लिए बलिदान दिया था । वसंत पंचमी के दिन वीर हकीकत राय ने भी अपने जीवन पुष्प को धर्म की वेदी पर समाप्त कर दिया था। वसंत ऋतु सर्दियों के तीन महीने के लंबे इंतिजार के बाद सुनहरा मौसम आता है।
लाभ-हानि
बसंत ऋतु में मनुष्य प्रसन्न रहता है। प्रकृति का रूप सुन्दर और आकर्षक होता है। इस वातावरण का प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर बहुत अच्छा पड़ता है। इस ऋतु में लोगों का स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता है। ऐसे समय में व्यायाम करना और प्रातः भ्रमण करना स्वास्थ्य के लिए अनुकूल होता है। यह ऋतु ग्रामवासियों के लिए अधिक लाभप्रद है, शहर के लिए उतना नहीं। बसंत का प्रभाव नगर वासियों पर अधिक नहीं पड़ पाता है। फिर भी नगरवासी अपनी सीमा में बसंत का आनंद लेते हैं।
निष्कर्ष
वसंत ऋतु मानव को यह संदेश देती हैं कि दुःख के बाद एक दिन सुख का आगमन भी होता है. जिस तरह परिवर्तनशीलता प्रकृति का नियम है उसी प्रकार जीवन में भी परिवर्तनशीलता का नियम लागू होता है. जिस तरह शिशिर ऋतु के बाद वसंत की मादकता का अपना एक अलग ही आनन्द होता है, उसी प्रकार जीवन में भी दुखों के बाद सुख का आनन्द दुगुना हो जाता हैं.
में आशा करता हु की आपको ये वसंत ऋतु पर निबंध जरूर पसंद आया होगा.