आरक्षण का आधार पर निबंध | Essay on Reservation in Hindi

आज में आपको आरक्षण का आधार पर निबंध के बारे में बताने जा रहा हु. भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद संविधान का जो प्रारूप तैयार किया गया उसमें अनुसूचित जाति एवं जन जाति के लोगों आरक्षण देने की विशेष व्यवस्था की गई थी। संविधान निर्माता जानते थे कि इस तरह की व्यवस्था देश के दीर्घकालीन हित में नहीं हैं, अतः उन्होंने आगामी दस वर्ष के लिए ही आरक्षण की व्यवस्था रखने की बात कही थी।

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आरक्षण का आधार पर निबंध

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आरक्षण का इतिहास

भारत मे, आरक्षण की प्रथा सदियों पुरानी थी . कभी किसी रूप मे तो, कभी किसी रूप मे, दलितों का शोषण होता है. दलित वर्ग के लोगो को, कभी सम्मान नही देना उनका अपमान करना . उन्हें आजादी से, उठने बैठने तक की स्वतंत्रता नही थी . इसके लिये डॉ भीमराव अम्बेडकर ने, सबसे पहले दलितों के लिये आवाज उठाई और उनके हक़ की लड़ाई लड़ी, तथा उनके लिये कानून बनाने की मांग की, व उनके लिये कानून बनाये गये. ऐतिहासिक तथ्यों और पुरातात्विक स्त्रोतों के माध्यम से, पता चलता है भारत से, आरक्षण का सम्बन्ध बहुत ही पुराना है . बस फर्क सिर्फ इतना है कि, समय के साथ इसके रूप बदलते गये. आखिर ये आरक्षण था क्या, और कहा से इसकी उपज हुई इसके मुख्य आधार क्या थे . क्या यह सिर्फ जाति के आधार पर था ? ऐसे बहुत सारे प्रश्न है जिसे हर कोई जानना चाहता है.

आरक्षण क्या है?

आरक्षण एक ऐसा शब्द है, जिसका नाम हर किसी के मुह पर होता है, अर्थात आरक्षण भारत मे, हमेशा से बहुत चर्चा मे रहा है। वैसे तो हम, इक्कीसवी सदी मे जी रहे है और अब तक आरक्षण कि ही, लड़ाई लड़ रहे है। युवाओ और देश के नेताओ के लिये, आज की तारीख मे सबसे अहम सवाल यह है कि,

आरक्षण के प्रकार

प्राचीन समय से, आज तक आरक्षण के कई रूप देखने को मिले है पर उनमे से, मुख्य इस प्रकार है –

  • जाति के आधार पर आरक्षण
  • माहिलाओ के लिये आरक्षण
  • शिक्षा के क्षेत्र मे आरक्षण
  • धर्म के आधार पर आरक्षण
  • आरक्षण के अन्य आधार

आरक्षण किसे मिलना चाहिए?

आरक्षण, उस व्यक्ति को मिलना चाहिये, जो सही मायने मे उसका हकदार है। जबकि, उस व्यक्ति को, कोई फायदा ही नही मिल रहा है। क्योंकि, भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है। यहा हर जाति समुदाय के, या वर्ग के लोग निवास करते है। भारत मे, बहुत प्राचीन प्रथा थी जो, अंग्रेजो के समय से थी जिसमे, उच्च-नीच का भेद-भाव बहुत होता था। धीरे-धीरे इस छोटी सी समस्या ने, एक विशाल रूप ले लिया। जिसके चलते जाति के आधार पर, व्यक्ति की पहचान होने लगी, और उसी जाति के आधार पर उसका शोषण होने लगा।

आरक्षण के लाभ

सबसे पहले बात करें आरक्षण के लाभ की तो आरक्षण से उन लोगों को फायदा हो सकता है जो समाज में पिछड़े हैं और निम्न जाति के हैं। आरक्षण को निम्न जाति के उत्थान के लिए ही लाया गया था। प्राचीन समय से ही निम्न जातियों के साथ जाति के नाम पर हो रहे उच्च-निच्च के भेदभाव से समाज में उनकी स्थिति काफी पिछड़ चुकी थी।

उनकी उस स्थिति को ध्यान में रखते हुए बीआर अंबेडकर और अन्य संविधान निर्माताओं ने भारत के संविधान में आरक्षण को जोड़ने का निर्णय लिया था। आरक्षण के कारण निम्न जाति के लोगों के साथ होने वाले हैं ऊंच-नीच का भेदभाव खत्म हो चुका है और समाज में उनकी स्थिति सुधर चुकी है और उनके जीवन शैली विकसित हो रहे हैं।

आरक्षण के हानि

आरक्षण को इस उद्देश्य से लाया गया था कि समाज में निम्न वर्ग के लोगों का उत्थान किया जाएगा और उनके जीवन शैली में सुधार हो पाएगा। हालांकि आज निम्न वर्ग के लोगों की जीवनशैली तो सुधर चुकी है। लेकिन आरक्षण उन लोगों के लिए समस्या बन चुकी है जो उच्च वर्ग के हैं और वे योग्य हैं।

आरक्षण को जाति के आधार पर लागू किया गया है जिसके कारण उच्च वर्ग का यदि कोई व्यक्ति गरीब परिवार से आता है, तो योग्य होने के बावजूद भी उसे कई बार आरक्षण के कारण नौकरी नहीं मिल पाती। वही जाती के आधार पर लागू किए गए आरक्षण की बैसाखी की मदद से निम्न वर्ग का अयोग्य व्यक्ति को भी आसानी से नौकरी मिल जाती है।

जिसका एक ही उपाय है कि सरकार आरक्षण को जाति के आधार से हटाकर उसे आर्थिक आधार पर लागू कर दे ताकि आरक्षण किसी विशेष जाति के लिए लागू ना होकर उन लोगों के लिए लागू हो जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है लेकिन वे योग्य है।

आरक्षण का उद्देश्य

आरक्षण की व्यवस्था को बनाने का उद्देश्य समाज के पिछड़े वर्ग को ऊपर उठाना था उनके जीवन स्तर में मूलभूत सुधार लाने थे, इसके लिए रोजगार एवं नौकरियों में आरक्षण के प्रावधानों को लागू किया जाना था। मगर राजनीतिक चालबाजी के चलते यह अपने उद्देश्यों को पूर्ण नहीं कर पाया। इसका परिणाम यह हुआ कि एक अनिश्चितकालीन सांविधानिक व्यवस्था को निरंतर बढ़ाया जाता रहा। नतीजा हम सभी के समक्ष है आज भी आरक्षित समुदाय के गरीब लोग इसके लाभ को नहीं ले पाए रहे हैं, जबकि सम्पन्न लोग इसे एक हथियार के रूप में उपयोग कर रहे हैं। भारत सरकार ने हाल ही में स्वर्ण जातियों के गरीबों के लिए भी दस प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की हैं। इन सबके बावजूद आरक्षण की व्यवस्था संतोष जनक नहीं है तथा इसे आर्थिक आधार पर लागू किये जाने की महत्ती आवश्यकता हैं।

आरक्षण की वर्तमान स्थिति

आरक्षण व्यवस्था को लागू हुए लगभग आधी शताब्दी होने जा रही हैं. आरक्षण की समाप्ति के बजाय इस क्षेत्र निरंतर बढ़ाया जा रहा हैं.

यह तथ्य स्वयं इस बात को पुष्ट करता है कि यह व्यवस्था अपना उद्देश्य प्राप्त करने में असफल रही हैं. जिस जातीय दुर्भाव और सामाजिक विषमता को समाप्त करने के उद्देश्य से आरक्षण लाया गया वह और गहरा होता जा रहा हैं.

राजनैतिक क्षेत्र में आरक्षण

राजनैतिक क्षेत्र में भी आरक्षण की नीति को एक राजनैतिक अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। हमारे देश में जातीयता के आधार पर चुनाव जीते जाते हैं, जिसके फलस्वरूप जातीयता का विष निरन्तर बढ़ता जा रहा है। फिर भी हमें आरक्षण की नीति को स्वीकार करना ही पड़ेगा; क्योंकि सामाजिक–आर्थिक विषमता और मानसिक गुलामी से छुटकारा पाने का यही एकमात्र उपाय है, लेकिन आरक्षण की नीति को अधिक लम्बे समय तक नहीं अपनाया जाना चाहिए।

आरक्षण का लाभ आरक्षित वर्ग के वास्तविक पात्र को ही मिलना चाहिए। सामाजिक स्तर ऊँचा उठाने के लिए शिक्षा का प्रचार–प्रसार भी तीव्रगति से किया जाना चाहिए। समाज के सभी लोगों के हित को दृष्टिगत रखते हुए सरकार को अपने दुराग्रही दृष्टिकोण का त्याग करना चाहिए और सभी की उन्नति और विकास में समान रूप से सहयोग देना चाहिए।

नौकरियों में आरक्षण

नौकरियों में आरक्षण की इस व्यवस्था द्वारा मेधावी छात्रों के भविष्य पर कुठाराघात होना आरम्भ हो गया। उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा। केवल इसी आधार पर कि वे तथाकथित ऊँची जातियों से सम्बन्धित हैं, उनके भविष्य के मार्ग में आरक्षण व्यवस्था के अवरोधक खड़े किए गए। आज इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश के लिए सामान्य श्रेणी के विद्यार्थियों को 60% अंकों की आवश्यकता होती है, और मेडिकल कालेजों में 77% जबकि आरक्षित श्रेणी के उपर्युक्त कक्षाओं में प्रवेश के लिए केवल 25% व 40% अंक को आवश्यकता है। इससे सामान्य श्रेणी के छात्रों के मन में क्षोभ है। इसलिए मंडल आयोग की सिफारिशों की घोषणा होते ही पूरे देश में विशेषकर उत्तर भारत में छात्रों ने इसका विरोध शुरू कर दिया।

छात्रों में आरक्षण

सरकार ने छात्रों की शंकाएं व उनके भविष्य के प्रति डर को कम करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया। छात्रों के मन में इतनी निराशा बढ़ गई कि आत्महत्या जैसे कदम उठाने लगे। लगभग 50-60 छात्रों ने आत्मदाह किया। इससे बड़ा देश का दुर्भाग्य क्या होगा कि कल के भविष्य निर्माता छात्रों ने सरकार की हठधर्मिता से निराश होकर अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर दी लेकिन सत्ता के भूखे नेताओं को पूरे देश को जातियुद्ध में झोंकने के बाद भी लज्जा नहीं आई। अपना जनाधार बढ़ाने के लिए इस देश के उस समय के मुखिया ने जातिवाद के हथकंडों का सहारा लिया, जिसे इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा।

निष्कर्ष

आरक्षण वर्तमान की वह जरूरत है जिसे जाति, धर्म और, लिंग तक ही सीमित नही किया जा सकता . आज आर्थिक वृद्धि भी, बहुत बड़ा आधार है, आरक्षण का . एक समय था जब पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को इसकी बहुत जरुरत थी पर , आज हर जगह इनका वर्चस्व फैल गया है जिससे, सामान्य जाति के ऐसे लोग जो कि, आर्थिक रूप से पिछड़ गये उनको बहुत आवश्यकता है आरक्षण की . तो समय के साथ जाति, लिंग, धर्म के अलावा आर्थिक परिस्थिति व योग्यता को भी ध्यान मे रख कर, आरक्षण का निर्धारण करे . जिससे सभी की समस्या का समान रूप से, हल निकले और आरक्षण का सही मायने मे, सभी को लाभ मिल सके. में आशा करता हु की आपको ये आरक्षण का आधार पर निबंध जरूर पसंद आया होगा.

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