कबीरदास जी का जीवन परिचय | Kabir das ji ka jivan parichay

दोस्तों आज में आपको Kabir das ji ka jivan parichay के बारे में कहूँगा | में आशा करता हु की आपको ये Kabir das ji ka jivan parichay जरूर पसंद आएगा | अगर आपको ये Kabir das ji ka jivan parichay पसंद आए तो आप एक बार Surdas ka jeevan parichay इसे जरूर पढ़े |

Kabir das ji ka jivan parichay

kabir-das-ji-ka-jivan-parichay

संत कबीरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व – प्रेमी का अनुभव था। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है।

कबीरदास जी का जीवन परिचय

हालांकि कबीर दास जी के जन्म को लेकर कई विद्वानों में मतभेद रहे हैं फिर भी ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म 15 वीं सदी ,संवत 1455 में काशी में हुआ इनके गुरु का नाम संत आचार्य रामानंद जी था। कबीर दास जी को एक ज्ञानवान गुरु की तलाश थी तब वे संत आचार्य रामानंद जी से मिले और तभी से ये रामानंद जी को अपना गुरु बनाना चाहते थे। परंतु रामानंद जी ने कबीर का गुरु बनने से इनकार कर दिया।

कबीर दास जी ने निश्चय कर लिया था कि हर हाल में इन्हें अपना गुरु तथा मैं इनका शिष्य बन कर रहूंगा रामानंद जी रोजाना गंगा स्नान करने जाते थे तब इनको विचार आया और ये सुबह 4 बजे जिस मार्ग से रामानंद जी स्नान करने जाते उसी मार्ग पर सीढ़ियों पर लेट गए सुबह 4 बजे जब रामानंद जी स्नान के लिए लौट रहे थे तो उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ा और तत्काल उनके मुख से राम-राम शब्द निकल पड़ा उसी समय से कबीर दास जी ने उनको अपना गुरु माना रामानंद जी ने भी कबीर को अपना शिष्य मानकर तभी से शिक्षा-दीक्षा देने लगे।

पालन पोषण- नीरू और नीमा

इन्होंने कबीर दास जी को लहरतारा नामक तालाब पर पाया था कबीर दास जी एक विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे जिसे यह ब्राह्मणी लहरतारा तालाब के पास छोड़ आई तो यहीं से नीरू और नीमा को यह बच्चा मिला जिसे यह घर पर ले गए और उनका लालन-पालन किया और उनका नाम कबीर दास रखा। कबीर दास की दो शिष्य थे जिनका नाम लोही और कमाली था।

इन्हें कबीर पंथ मे विरानी व बाल ब्रह्मचारी बताया गया परंतु ऐसा माना जाता है कि कबीर दास जी की पत्नी एवं संतान दोनों थे। कबीरदास के सारे ग्रंथ उनके द्वारा नहीं लिखे गए वे बोलते व उनके शिष्य लिखते थे। ऐसा माना जाता है कि कबीर दास जी अनपढ़ थे।

कबीरदास की शिक्षा

कबीर ने स्वयं कहां है –
” मरि कागद छुयौ नहिं, कलम गह्यौ हाथ “

अनपढ़ होते हुए भी कबीर का ज्ञान बहुत व्यस्त था। साधु-संतों और फकीरों की संगति में बैठकर उन्होंने वेदांत, उपनिषद और योग का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सूफी फकीरों की संगति में बैठकर उन्होंने इस्लाम धर्म के सिद्धांतों की भी जानकारी कर ली थी। देशाटन के द्वारा उन्हें बहुत अनुभव हो गया था।

कबीरदास के गुरु

कबीर ने काशी के प्रसिद्ध महात्मा रामानंद को अपना गुरु माना है। कहा जाता है, कि रामानंद जी ने नीच जाति का समझकर कबीर को अपना शिष्य बनाने से इनकार कर दिया था, तब एक दिन कबीर गंगा तट पर जाकर सीढ़ियों पर लेट गये जहां रामानंद जी प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने जाया करते थे। अंधेरे में रामानंद जी का पैर कबीर के ऊपर पड़ा और उनके मुख से राम राम निकला तभी से कबीर ने रामानंद जी को अपना गुरु और राम नाम को गुरु मंत्र मान लिया। कुछ विद्वानों ने प्रसिद्ध सूफी फकीर शेखतकी को कबीर का गुरु माना है

कबीरदास जी की रचनाएँ

  • रचनाएं:- कबीर दास जी की रचनाएं कृतियां और उनकी वाणी का संग्रह बीजक के नाम से प्रसिद्ध है इनकी प्रमुख तीन रचनाएं देखने को मिलती है बीजक के अंतर्गत आप देख सकते है।
  • बीजक (साखी सबद रमैनी) यह कई भाषाओं जैसे ब्रज, अवधि, पूरबी, खड़ी बोली, राजस्थानी और पंजाबी सभी भाषाओं का संग्रह थी।
  • साखी:- अधिकांश साखियां दोहे में लिखी गई और इनमें सोर्टो का भी प्रयोग किया गया कबीर के सिद्धांत साखी के द्वारा ही बताएं गए थे।
  • सबद- इसमें कबीर दास जी के मुख्य उद्देश्य, भाव बताएं गए। यह पूरी तरह संगीतात्मक रूप में लिखी गई इसमें कबीर के प्रेम साधना की अभिव्यक्ति मिलती है।
  • रमैनी:- ये चौपाइयां व छंद में लिखी गई है इसके अंतर्गत कबीर के रहस्यवादी व दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया।

कबीरदास जी के जीवन के महत्वपूर्ण बिंदु

कबीर दास जी शांतिपूर्ण वातावरण में रहने वाले व्यक्ति थे एवं अहिंसा के मार्ग पर चलते, हमेशा सत्य बोलते व समाज में उपस्थित गंदगी से दूर रहते तथा उसे समाज व लोगों के अंदर से समाप्त करना इनका मकसद बन गया था इन्होंने जातिवाद ऊंच-नीच भेदभाव सभी का विरोध किया, ऐसे सरल स्वभाव के कारण लोग इनका आज भी आदर करते व पूजते हैं।

कबीर दास जी निर्गुण भक्ति के कवि थे यह मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते हैं उनके अनुसार प्रभु को आप कहीं भी देख सकते हैं वे प्रत्येक कण में विद्यमान है। जब राम को अपने मित्र अपने माता-पिता सभी में देख पा रहे हैं तो आप मूर्ति पूजा क्यों करते हो।

कबीर दास जी को कदापि मंजूर नहीं था कि राम किसी फ्रेम ढांचे में बैठ जाएं वो राम की रूपाकृति की भी कल्पना नहीं करते हैं। उनके अनुसार बस विश्वास होना चाहिए कि राम है, ईश्वर को कभी भी उनके रूप से, काल से उनके नाम से तथा उनके गुण से सीमाओं में बांधा नहीं जा सकता।

कबीरदास जी का साहित्य में स्थान

कबीर दास जी बहुमुखी प्रतिभा लेकर अवतरित हुए थे अकड़ व्यक्ति थोड़े लापरवाह और मस्त मौलाना फकीर थे मुसलमान होते हुए भी मुसलमान नहीं और जन्म से हिंदू होते हुए भी विरक्त और विरक्त होते हुए गृहस्थ थे। कबीर दास जी ने बाहरी आडंबर करने वाले को फटकारा है। धर्मनिरपेक्ष के साथ चलते हुए हिंदू और मुसलमान को एक समान बताया और एक साथ रहने का पाठ पढ़ाया।

ये एक समाज सुधार कवि रहे। इनकी सरल स्वभाव व्यक्तित्व और विचारों से प्रभावित होकर इनके सैकड़ों अनुयाई बन गए। इनके नाम के कबीर मठ, कबीर पंथ स्थापित हो गये। आज केवल बनारस या काशी में ही नहीं बल्कि सर्वत्र जगह इनको पूजा जाता है।

मृत्यु

कबीर ने काशी के पास मगहर में देह त्याग दी। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने।

मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है। जन्म की भाँति इनकी मृत्यु तिथि एवं घटना को लेकर भी मतभेद हैं किन्तु अधिकतर विद्वान् उनकी मृत्यु संवत 1575 विक्रमी (सन 1518 ई.) मानते हैं, लेकिन बाद के कुछ इतिहासकार उनकी मृत्यु 1448 को मानते हैं।

निष्कर्ष

तो दोस्तों में उम्मीद करता हु की आपको ये Kabir das ji ka jivan parichay जरूर पसंद आया होगा |

Leave a Comment