Jainendra kumar ka jivan parichay | जैनेन्द्र कुमार का जीवन परिचय

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Jainendra kumar ka jivan parichay

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जन्म

जैनेंद्र कुमार का जन्म 2 जनवरी 1905 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के कौड़ियागंज नामक गांव में हुआ था। उनका मूल नाम ‘आनंदीलाल’ था। बाद में जैन धर्म दीक्षित होने के समय उनके मामा ने उनका नाम ‘जैनेंद्र’ रख दिया था। जैनेंद्र कुमार के पिता का नाम प्यारे लाल और उनकी माता का नाम रामदेवी बाई था। जब वे 2 वर्ष के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद में उनका पालन -पोषण उनके मां और मामा ने किया था। 1929 में जैनेंद्र कुमार का विवाह भगवती देवी के साथ हुआ।

शिक्षा

जैनेंद्र कुमार ने अपनी दसवीं तक की शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल से प्राप्त की। बाद में उच्च शिक्षा के लिए वे काशी विश्वविद्यालय मे चले गए। 1921 में उन्होंने विश्वविद्यालय के पढ़ाई छोड़ दी और काग्रेस के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के उद्देश्य से दिल्ली आ गए इसके कुछ समय के लिए भी लाला लाजपत राय के तिलक स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स में रहे अंत में उसे भी छोड़ दिया।

करियर

गांधीजी से प्रभावित होकर असहयोग आंदोलन में भाग लेने के चलते उनकी कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छूट गई गांधी दर्शन से प्रभावित उनके लेखन की शुरुआत 1927 ई० में हुई। जब उनकी प्रथम कहानी ‘खेल’ विशाल भारत में प्रकाशित हुई थी। 1936 में उन्होंने ‘हंस’ पत्रिका के विशेषांक का संपादन किया और आगे चलकर ‘लोक जीवन’ पत्र की स्थापना की। उन्होंने कल्प’ ( पाक्षिक पत्र) का प्रारंभिक संपादन भी किया तथा ताउम्र लेखन कार्य में लगे रहे।

रचनाएं

जैनेंद्र कुमार जी ने हिंदी गद्य साहित्य के एक महान लेखक थे उनकी लेखनी से निकलने वाली प्रमुख रचना इस प्रकार है-

उपन्यास

  • परख
  • अनाम
  • स्वामी
  • सुनीता
  • कल्याणी
  • त्यागपत्र
  • जयवर्धन
  • मुक्तिबोध

कहानी संग्रह

  • वातायन
  • दो चिड़िया
  • फांसी
  • एक रात
  • नीलम देश की राजकन्या
  • पाजेब

नाटक

  • टकराहट

विचार प्रधान निबंध संग्रह

  • प्रस्तुत प्रश्न
  • जड़ की बात
  • पूर्वोदय
  • साहित्य का श्रेय और प्रेय
  • सोच विचार
  • समय और हम
  • इतस्तत


संस्मरण
यह और वे
प्रेमचंद : एक कृति व्यक्तित्व

बाल साहित्य

  • वह बेचारा
  • किसान की भूल
  • गांधी : कुछ स्मृतियां

अनुवाद

  • पाप और प्रकाश ( नाटक- टॉलस्टाय )
  • प्रेम में भगवान (कथा- संग्रह- टॉलस्टाय)

साहित्यक विशेषताएं

हिंदी में प्रेमचंद के बाद सबसे महत्वपूर्ण कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित जैनेंद्र कुमार का अवदान बहुत व्यापक और वैविध्यपूर्ण है। उन्होंने कहानी और उपन्यासकारों घटना के स्तर से उठाकर ‘चरित्र’ और ‘मनोवैज्ञानिक सत्य’पर लाने का प्रयास किया और एक सशक्त मनोवैज्ञानिक कथा धारा का प्रवर्तन किया। परख और सुनीता (उपन्यास) के बाद 1937 में प्रकाशित ‘त्याग-पत्र’ ने उन्हें मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार के रूप में व्यापक प्रतिष्ठा दिलाई। इसी प्रकार उनकी कुछ कहानियां जैसे- खेल, पाजेब, नीलम देश की राजकन्या, अपना – अपना भाग्य, तत्सत को भी उनकी कालजयी कहानियों के रूप में मान्यता मिली। प्रेमचंद से तुलना करते हुए भी उन्हें इस अर्थ में प्रेमचंद से भी श्रेष्ठ माना जाता है कि यह कहानी कहने से भागते हैं, घटनाओं को प्राय: छोड़ते जाते हैं या उनकी जगह संकेतों से काम लेना पसंद करते हैं।

कथाकार होने के साथ-साथ उनकी पहचान अत्यंत गंभीर चिंतक के रूप में भी रही है। उन्होंने बहुत सरल एवं अनौपचारिक-सी दिखने वाली शैली में समाज, राजनीति,अर्थनीति एवं दर्शन से संबंधित गहन प्रश्नों को सुलझाने की कोशिश की है। उन्होंने अपनी गांधीवादी चिंतन दृष्टि का जितना सूष्ठु व सहज उपयोग जीवन जगत से जुड़े प्रश्नों के संदर्भ में किया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है और इस बात का प्रमाण है कि गांधीवाद को उन्होंने कितनी गहराई से हृदयंगम किया है।

भाषा शैली
जैनेन्द्र कुमार जी की भाषा साहित्य खड़ी बोली है। इनकी भाषा मनोवैज्ञानिक के अनुकूल सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है। उन्होंने अपनी भाषा में तत्सम-तद्भव शब्दों के साथ-साथ यथा प्रयोजन उर्दू, फारसी व अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग किया है। प्रसाद गुण उनकी भाषा के सर्वत्र व्याप्त है ये यथा प्रसंग लक्षणा व्यंजना शब्द शक्तियों का प्रयोग करने में सिद्धहस्त है। उनका वाक्य विन्यास विन्यास सरल सहज तथा स्वभाविक है। उनके संवाद छोटे, रोचक व चुटीले हैं। उनकी भाषा में कई शैलियां -वर्णनात्मक, प्रतीकात्मक, चित्रात्मक, आत्म-कथात्मक, संवादात्मक आदि का प्रयोग होते हुए भी विचारात्मक शैली की प्रधानता है। सभी प्रकार के बिबों का प्रयोग वे बड़ी कुशलता के साथ करते हैं।

पुरस्कार

अपने लेखन के सुदीर्घ अवधि में जैनेंद्र कुमार जी ने कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त किए हैं उनमें से कुछ इस प्रकार है-

  • मंगला प्रसाद पारितोषिक – समय और हम पर
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार- मुक्तिबोध पर
  • पदमभूषण सम्मान – 1971 में
  • उत्तर प्रदेश सरकार का भारत भारती पुरस्कार 1984 में।
  • आगरा में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा डिलीट की मानद उपाधि से सम्मानित।

मृत्यु

24 दिसंबर, 1988 में जैनेंद्र कुमार जी की मृत्यु हो गई।

निष्कर्ष

तो दोस्तों में आशा करता हु की आपको ये Jainendra kumar ka jivan parichay जरूर पसंद आया होगा |

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