दोस्तों आज में Bhagat singh ka jivan parichay के बारे में कहूँगा | भगत सिंह सिर्फ नाम सुनके ही हम सबमे जोश आ जाता है एसा तो उनका प्रभाव था | में आशा करता हु की Bhagat singh ka jivan parichay के बारे में पढके आप में भी जोश आ जाएगा | अगर आपको ये Bhagat singh ka jivan parichay पसंद आए तो आप एक बार Goswami tulsidas ka jivan parichay इसे जरूर पढ़े |
Bhagat singh ka jivan parichay

जन्म
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1960 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था जो पाकिस्तान में स्थित है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह सिंधु था और माता का नाम श्रीमती विद्यावती जी था। यह 10 भाई बहन थे। भगत सिंह का नाम अमर शहीदों में लिया जाता है। उनका पैतृक गांव खटकड़ कलां है जो पंजाब में है।
शहीद भगत सिंह भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक है जिन्होंने हमें अपने देश के लिए मर मिटने की ताकत दी और यह बताया कि देश प्रेम क्या है। भगत सिंह का जन्म सिख परिवार में हुआ था। जब भगत सिंह का जन्म हुआ तो उनके पिता सरदार किशन सिंह जी जेल में थे। उनके चाचा श्री अजीत सिंह जी स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी।
शिक्षा
भगत सिंह ने अपने गाँव के स्कूल में पाँचवीं कक्षा तक पढ़ाई की. जिसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने उन्हें लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में दाखिला दिलाया. बहुत कम उम्र में, भगत सिंह ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का अनुसरण किया. भगत सिंह ने खुले तौर पर अंग्रेजों को ललकारा था और सरकार द्वारा प्रायोजित पुस्तकों को जलाकर गांधी की इच्छाओं का पालन किया था. यहां तक कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए स्कूल छोड़ दिया.
उनके किशोर दिनों के दौरान दो घटनाओं ने उनके मजबूत देशभक्ति के दृष्टिकोण को आकार दिया – 1919 में जलियांवाला बाग मसकरे और 1921 में ननकाना साहिब में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों की हत्या | उनका परिवार स्वराज प्राप्त करने के लिए अहिंसक दृष्टिकोण की गांधीवादी विचारधारा में विश्वास करता था. भगत सिंह ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और असहयोग आंदोलन के पीछे के कारणों का भी समर्थन किया |
चौरी चौरा घटना के बाद, गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का आह्वान किया. फैसले से नाखुश भगत सिंह ने गांधी की अहिंसक कार्रवाई से खुद को अलग कर लिया और युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए. इस प्रकार ब्रिटिश राज के खिलाफ हिंसक विद्रोह के सबसे प्रमुख वकील के रूप में उनकी यात्रा शुरू हुई.
वह बी.ए. की परीक्षा में थे. जब उनके माता-पिता ने उसकी शादी करने की योजना बनाई. उन्होंने सुझाव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि, “यदि उनकी शादी गुलाम-भारत में होने वाली थी, तो मेरी दुल्हन की मृत्यु हो जाएगी.”
मार्च 1925 में यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रेरित होकर भोज सिंह के साथ, इसके सचिव के रूप में नौजवान भारत सभा का गठन किया गया था. भगत सिंह एक कट्टरपंथी समूह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.आर.ए.) में भी शामिल हुए. जिसे बाद में उन्होंने साथी क्रांतिकारियों चंद्रशेखर आज़ाद और सुखदेव के साथ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.एस.आर.ए.) के रूप में फिर से शुरू किया. शादी करने के लिए मजबूर नहीं करने के आश्वासन मिलने के बाद वह अपने माता-पिता के घर लाहौर लौट आए |
उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के सदस्यों के साथ संपर्क स्थापित किया और अपनी पत्रिका “कीर्ति” में नियमित रूप से योगदान देना शुरू कर दिया. एक छात्र के रूप में भगत सिंह एक उत्साही पाठक थे और वे यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों के बारे में पढ़ते थे. फ्रेडरिक एंगेल्स और कार्ल मार्क्स के लेखन से प्रेरित होकर, उनकी राजनीतिक विचारधाराओं ने आकार लिया और उनका झुकाव समाजवादी दृष्टिकोण की ओर हो गया.
भगत सिंह स्वतंत्रता की लड़ाई
भगत सिंह ने सबसे पहले नौजवान भारत सभा ज्वाइन की. जब उनके घर वालों ने उन्हें विश्वास दिला दिया, कि वे अब उनकी शादी का नहीं सोचेंगे, तब भगत सिंह अपने घर लाहौर लौट गए. वहां उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के लोगों से मेल जोल बढ़ाया, और उनकी मैगजीन “कीर्ति” के लिए कार्य करने लगे. वे इसके द्वारा देश के नौजवानों को अपने सन्देश पहुंचाते थे, भगत जी बहुत अच्छे लेखक थे, जो पंजाबी उर्दू पेपर के लिए भी लिखा करते थे, 1926 में नौजवान भारत सभा में भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया गया |
इसके बाद 1928 में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) ज्वाइन कर ली, जो एक मौलिक पार्टी थी, जिसे चन्द्रशेखर आजाद ने बनाया था. पूरी पार्टी ने साथ में मिलकर 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आये, सइमन कमीशन का विरोध किया, जिसमें उनके साथ लाला लाजपत राय भी थे. “साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन में ही खड़े रहे. जिसके बाद वहां लाठी चार्ज कर दिया गया, जिसमें लाला जी बुरी तरह घायल हुए और फिर उनकी म्रत्यु हो गई.
लाला जी की म्रत्यु से आघात भगत सिंह व उनकी पार्टी ने अंग्रेजों से बदला लेने की ठानी, और लाला जी की मौत के लिए ज़िम्मेदार ऑफीसर स्कॉट को मारने का प्लान बनाया, लेकिन भूल से उन्होंने असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स को मार डाला. अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह तुरंत लाहौर से भाग निकले, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनको ढूढ़ने के लिए चारों तरह जाल बिछा दिया. भगत सिंह ने अपने आप को बचाने के लिए बाल व दाढ़ी कटवा दी, जो की उनके सामाजिक धार्मिकता के खिलाफ है. लेकिन उस समय भगत सिंह को देश के आगे कुछ भी नहीं दिखाई देता था.
चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजदेव व सुखदेव ये सब अब मिल चुके थे, और इन्होंने कुछ बड़ा धमाका करने की सोची. भगत सिंह कहते थे अंग्रेज बहरे हो गए, उन्हें ऊँचा सुनाई देता है, जिसके लिए बड़ा धमाका जरुरी है. इस बार उन्होंने फैसला किया, कि वे लोग कमजोर की तरह भागेंगे नहीं बल्कि, अपने आपको पुलिस के हवाले करेंगे, जिससे देशवासियों को सही सन्देश पहुंचे. दिसम्बर 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की असेंबली हॉल में बम ब्लास्ट किया, जो सिर्फ आवाज करने वाला था, जिसे खाली स्थान में फेंका गया था. इसके साथ ही उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाये और पर्चे बाटें. इसके बाद दोनों ने अपने आप को गिरफ्तार कराया.
मृत्यु
24 मार्च 1931 फांसी दी जानी थी। लेकिन देश के लोगों ने उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन करने शुरू कर दिए। इसके चलते ब्रिटिश सरकार को डर लगने लगा कि अगर भगत सिंह को रिहा कर दिया गया तो वे सरकार को जिंदा नहीं छोड़ेंगे लिए 23 मार्च 1931 की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव ,राजगुरु को फांसी दे दी गई। जाने से पहले वे लेनिन जीवनी पढ़ रहे थे।
उनसे उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई उन्होंने लेनिन की जीवनी पूरी पढ़ने का समय में मांगा। कहा जाता है कि जेल अधिकारियों ने जब यह सूचना दी गई की अब उनकी फांसी का वक्त हो गया है तो उन्होंने कहा था -“ठहरिये” एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिलने मिलने दो। 1 मिनट के बाद छत की ओर पुस्तक को उछाल कर बोले-” ठीक है अब चलो । ”
फाँसी पर जाते समय तीनों क्रांतिकारी मस्ती में मग्न होकर गीत गुनगुना रहे थे-
मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे।
मेरा रंग दे बसंती चोला। माय रंग दे बसंती चोला।।
निष्कर्ष
दोस्तों में ये आशा करता हु की आपको ये Bhagat singh ka jivan parichay को पढ़ बेहद आंनद आया होगा और उनके जीवन से आपको बहोत कुछ शिखने भी मिला होगा |